शैलेश कुमार|| कावर झील बिहार के बेगुसराय जिले में मंझौल के पास है। यह झील जैव विविधता और नैसर्गिक – प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। मौसम के मुताबिक झील के क्षेत्र में परिवर्तन होता रहता है। वैसे मानसून के दौरान इसका क्षेत्रफल साढ़े सात हजार हेक्टेयर हो जाता है जबकि गर्मी में यह चार सौ हेक्टेयर तक सिमट कर रह जाती है।
इस झील की प्रसिद्धि स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की शरण स्थली के कारण तो है ही, विविध प्रकार के जलीय पौधों के आश्रय के रूप में भी झील मशहूर है।
लाखों की संख्या में किस्म-किस्म के पक्षी, खास कर शीतकाल में यहां दिखाई देते हैं। अंतर्राष्ट्रीय पक्षी मलेशिया, चीन, श्रीलंका, जापान, साइबेरिया, मंगोलिया, रूस से जाड़े के मौसम में प्रवास पर आते हैं। लेकिन स्थिति यह है कि अब कावर झील में पानी की कमी रहने लगी है, नतीजतन विदेशी पक्षी दूसरे झीलों की ओर अपना रुख कर रहे हैं।
विश्व के विभिन्न झीलों के संरक्षण के लिए 1971 में ईरान के रामसर में अंतर्राष्ट्रीय संस्था का गठन किया गया था। 1981 में भारत भी इसका सदस्य बना। संरक्षण के लिए
चयनित विश्वस्तरीय झीलों में कावर का भी स्थान होना चाहिए।
बिहार सरकार ने इस झील को 1987 में ही पक्षी विहार का दर्जा दे चुकी है। इसकी गिनती विश्व के वेटलैंड प्रक्षेत्र में होती है। सरकारी अधिसूचना के मुताबिक यहां पशु-पक्षी का शिकार अवैध है। पक्षियों के साथ-साथ विभिन्न प्रजाति की मछलियां भी पाई जाती हैं। एक अध्ययन के मुताबिक सैंतीस तरह की मछलियों की उपलब्धता इस झील में है।
इस झील के जलीय प्रभाग में कछुआ और सर्प जैसे
जंतुओं की कई प्रजातियां तो पाई ही जाती हैं, स्थलीय भाग में सरीसृप वर्ग की ही छिपकलियों की विभिन्न प्रजातियां भी यहां पाई जाती हैं। झील के निकटवर्ती स्थलीयभाग में नीलगाय, सियार और लोमड़ी बड़ी तादाद में पाए जाते हैं। पशु-पक्षियों के साथ-साथ व्यावसायिक दृष्टिकोण से कई प्रकार के फल और सब्जियों का उत्पादन भी इस झील में किया जाता है मखाना, सिंघाड़ा, रामदाना जैसे पौष्टिक तत्वों का उत्पादन यहां सालों से किया जा
रहा है।
यह एशिया महादेश की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है। पर्यटन के दृष्टिकोण से दुर्लभ प्रवासी पक्षियों को देखने का एक अद्भुत आनंद है।