दिवाली से शुरू होकर नौ दिनों तक चलने वाले हिंदुओं के प्रमुखों त्योहारों में लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा का विशेष स्थान है। छठ पूजा उत्तर भारत में बेहद अहम त्योहार या पर्व है। चार दिनों तक होने वाले इस त्योहार को महापर्व भी कहते हैं। इस पर्व में भगवान सूर्य की उपासना और अर्घ्य देने का नियम है। इस बार छठ पूजा की तिथि चार नवंबर से लेकर सात नवंबर तक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पर्व को मनाने को लेकर 4 तरह की कहानियां प्रसिद्ध है।
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाई जाती है। यह चार दिवसीय महापर्व है जो चौथ से सप्तमी तक मनाया जाता है। इसे कार्तिक छठ पूजा कहा जाता है। इसके अलावा चैत महीने में भई यह पर्व मनाया जाता है जिसे चैती छठ पूजा कहते हैं। पष्ठी के दिन माता छठी की पूजा की जाती हैं, जिन्हें धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उषआ (छठी मैया) कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार छठी मइया और भगवान सूर्य करीबी संबंधी हैं। इस पर्व के दौरान छठी मइया के अलावा भगवान सूर्य की पूजा-आराधना होती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन दोनों की अर्चना करता है उनकी संतानों की रक्षा छठी माता करती हैं।
पढ़िए इस महापर्व से जुड़ी 4 कहानियां
सूर्य की उपासना से हुई राजा प्रियवंद दंपति को संतान प्राप्ति
बहुत समय पहले की बात है राजा प्रियवंद और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप के निर्देश पर इस दंपति ने यज्ञ किया जिसके चलते उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। दुर्भाग्य से यह उनका बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ. इस घटना से विचलित राजा-रानी प्राण छोड़ने के लिए आतुर होने लगे। उसी समय भगवान की भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होगी। राजा प्रियंवद और रानी मालती ने देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। और तभी से छठ पूजा होती है।
अयोध्या लौटने पर भगवान राम ने किया था राजसूर्य यज्ञ
विजयादशमी के दिन लंकापति रावण के वध के बाद दिवाली के दिन भगवान राम अयोध्या पहुंचे। रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान राम ने ऋषि-मुनियों की सलाह से राजसूर्य यज्ञ किया। इस यज्ञ के लिए अयोध्या में मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीते को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इसके बाद मां सीता मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
जब कर्ण को मिला भगवान सूर्य से वरदान
छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। मान्याताओं के अनुसार वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे।
राजपाठ वापसी के लिए द्रौपदी ने की थी छठ पूजा
इसके अलावा महाभारत काल में छठ पूजा का एक और वर्णन मिलता है। जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाठ तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था।