हाँ ये वही दिन है २१ अक्टूबर 1992 जिन दिन शाम को शशि भूषण मिश्रा जी के परिवार और जिंदगी में ऐसे मिठास बढ़ गया की मानो वक़्त ने यूँ मुठी भर के मिश्री ही घोल गया हो ! कुछ दिन में नन्ही से गुडिया का नाम “नेहा” रखा गया !
नेहा फिर बढ़ने लगी , प्रतिभाये खिलने लगी , ओज दिन दिखने लगा , जोश बढ़ने लगा , शोर मचने लगा ! हाँ स्कूल से कॉलेज हर तरफ नेहा अपने बेहतरीन और सबसे अलग बेहतर सकारात्मक कार्य में ऐसे संलग्न किया आगे बढाया की ये बचपन में कैमूर की पहाड़ो हरियाली में बिहार की ये बेटी की जिंदगी शानदार संतुलित कॉकटेल सा बनता गया ! पहाड़ की तरह अंदर दृढ़ निश्चय , यूँ ऊँचा स्वाभिमान, लक्ष्य के प्रति पत्थर सा अडिग विचार ! लेकिन फिर दूसरी तरफ देखें तो वो ठंढी शीतल हवा और वादियों वाला सुहाना मन , मतवालापन ! नदियों की तरह बस आगे बढ़ना है , बढ़ते रहना है , अपनी मन की करनी है , अच्छा से से भी अच्छी बननी है !
अब ऐसा कुछ पढ़ के लग रहा होगा की कहीं ज्यादा तो नहीं हो गया ! बिलकुल नहीं साहेब, आगे कारनामे और भी हैं !
जैसा चरित्र वैसे पढाई ये कंप्यूटर साइंस से स्नातक करने लगी , और साथ में शायरी , कविताये भी लिखने लगी, कला के क्षेत्र में भी बराबर रूचि ! निर्मल स्वाभाव के ब्राह्मण परिवार की ये बिटिया कभी आपको अपने निर्मलता से , तो कभी निश्छलता से , तो कभी विषय वस्तु की जानकारी से , तो कभी अपनी मधुर कविता से जीत लेगी ! जिससे भी मिलती है दीवाना करती ये मंद ठंढी हवा के झोके की तरह बहती रहती है !
कहा था न नदियाँ बात कहाँ मानती है , सीमा कहाँ तय कर पाती है , दायरा यहाँ भी नहीं है ! इन्होने अपने कविता संग्रह बनाई , किताब लिखी एक नाम “जीवन के नुपुर” — निपुण लेखिका “नेहा नुपुर” ! आप भी पढ़ के अवगत हो सकते हैं , अब तो ये online भी उपलब्ध है Amazon पे
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और ये प्रकृति से जुडा हुआ प्रकृति वाला इंसान बच्चो से कहाँ दूर रह पाता है , खुद को दूर नहीं रख पाता है ! इसलिए ये सरकारी स्कूल में शिक्षिका बन के जिंदगी को और खुशनुमा कर रही हैं , और अपने जैसे और बेहतर कई जिंदगी बना रही हैं ! ज्ञात हो कि बिहार की वह बटी नेहा नूपुर ही है जिसने बिहार को बदनाम करने वालों और बिहार में जंगलराज कहने वालों को खुला पत्र लिख, अपने तर्क और शब्दों के वाण से सबकी बोलती बंद करा दी थी।
अपने मातृभूमि और बिहार के लिए इनका प्रेम, बिहार पर इनके द्वारा लिखे गये एक प्रसिद्ध कविता से झलकता है।
गाँव-घर से मिलल संस्कार कहाँ जाई,
मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई|
दुई-चार दिन तनी घरहूँ बितईहऽ,
इहवाँ के खुसबू पूरा देस में फइलइहऽ|
माटी के दीहल अधिकार कहाँ जाई,
मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई|
जाई के बिदेस, देस के बोली जनि भुलइहऽ,
लईकन के माई-बाबू कहे के सिखइहऽ|
जरि जाई देंहिया बाकिर बेवहार कहाँ जाई,
मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई|
गंगा के घाट, गुल्ली-डंटा के खेला,
हर साल लागे इंहा सोनपुर मेला|
एह सभ में रमल तोहार पेयार कहाँ जाई,
मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई|
सिंगापूर-अमेरिका में छठी माई के पूजन,
एके साथे होखे कुआरे पितरि अरपन|
एहिजा के तीज-त्योहार कहाँ जाई,
मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई|
नस-नस में रसल बिचार कहाँ जाई,
मनवा में बसल ई बिहार कहाँ जाई||
हम अपना बिहार की टीम भी कौन से कम नसीब वाले हैं , हमें भी ये कोहिनूर सा सहयोगी टीम में मिला ! शब्द नहीं है हमारे पास भगवन का शुक्रिया देने को ! आज “Aapna Bihar ” परिवार के लिए शानदार दिन है , हाँ आज जन्मदिन जो हैं ऐसी शानदार सक्सियत का ! सदा हंसती रहे, खुशियाँ बंटती रहे , सदा हमारे रहे , बिहार की मिटटी को महकते रहे , बिहार का देश का नाम रोशन करते रहे हमारी दिल से यही मंगल कामना है !