आज सारी माताएँ व्रत में हैं| जीवित पुत्रिका व्रत जो है आज| क्या कुछ नहीं करतीं माएँ अपने बच्चों के सुंदर, आरामदायक जीवन और लम्बी उम्र के लिए| पूत कपूत भले हो जाएँ, माता कुमाता नहीं हो सकती| माँ का स्थान यूँ ही भगवान् से ऊपर का नहीं होता| माँ किसी मायने में भगवान से कम नहीं| अगर बच्चों की तकदीर माँ लिखने लगे तो इस दुनिया में दुःख के लिए कोई जगह ही न रहे, जीवन का स्वाद माँ के हाथ की रोटियों सा हो जाये|
आज का दिन सारी माताएँ अपने बेटों के उज्ज्वल भविष्य और लम्बी आयु के लिए मनाती हैं| दिन भर निर्जला व्रत और फिर शाम में पूजा अर्चना| यु.पी.-बिहार में प्रचलित ये त्यौहार कई मायने में माँ-बेटे के रिश्ते की प्रगाढ़ता का प्रदर्शित करता है| माताएँ ‘ज्युतिया (जीवत्पुत्रिका)’ की आकृति को धागे में गढ़ के, उसकी पूजा कर के गले में धारण करती हैं|
मान्यताओं के अनुसार यह व्रत सतयुग से होता आया है| इसे माँ अपनी संतान के दीर्घायु होने के लिए करती है| यह व्रत सप्तमी रहित और उदयातिथि की अष्टमी को किया जाता है, तथा नवमी को पारण| सप्तमी विद्ध अष्टमी को किया गया व्रत फलदायी नहीं होता| कथा स्पष्ट करती है कि इस व्रत में त्रैलोक्य से पूजित दुर्गा अमृत प्राप्त करने के अर्थ में ‘जीवत्पुत्रिका’ कहलायी हैं| सो इस तिथि को स्त्रियाँ उस जीवत्पुत्रिका की और कुश की आकृति बनाकर पूजा करती हैं|
हमारे देश-प्रदेश में कई समाज ऐसे भी थे जहाँ सिर्फ पुत्रों के दीर्घायु होने के लिए ही यह व्रत किया जाता था| लेकिन गर्व की बात है, कुछ महिलाओं ने पुत्रियों के लिए भी व्रत करना शुरू किया है| माताएँ अगर रूढ़िवादी परम्पराएँ तोड़ सकती हैं तो सिर्फ सपनी संतान के लिए| सही मायने में ज्युतिया या जीवित पुत्रिका व्रत ही हिन्दू समाज का मातृत्व दिवस है|