राज्य में हो रहे टॉपर घोटाले एवं रिजल्ट में धांधली रोकने के लिए बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने इंटर और मैट्रिक परीक्षा की कॉपियां का मूल्यांकन डिजिटल मार्किंग स्किम सिस्टम के तहत करने जाने रही है। ऐसा होने के बाद परीक्षा के बाद कॉपियों की हेराफेरी और गड़बड़ी पर लगाम लग जायेगी।
परीक्षा के बाद कॉपियों की हेराफेरी और गड़बड़ी पर लगाम लगाने के लिए बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने डिजिटल मार्किंग सिस्टम लागू करने का फैसला लिया है। शिक्षक अब कंप्यूटर स्क्रीन पर स्कैन की हुई कॉपी जांच करेंगे और मार्क्स देंगे। कॉपी की जांच के बाद सिस्टम खुद ही उसे लॉक कर देगा और टोटल मार्क्स जोड़कर बता देगा। इस प्रक्रिया से रिजल्ट भी जल्दी निकलेगा और गड़बड़ी की संभावना भी नहीं रहेगी। अगले महीने होनेवाले कंपार्टमेंटल परीक्षा से ही बोर्ड ने इसे लागू करने का फैसला लिया है। कंपार्टमेंटल में लगभग 10.5 लाख कॉपियां जांची जाएंगी। इसके बाद इसे अगले साल होनेवाली मैट्रिक इंटर की परीक्षा में लागू किया जाएगा। बोर्ड अध्यक्ष आनन्द किशोर ने बताया कि इस व्यवस्था के लागू होने से कई फायदे होंगे। एक तो कॉपियों का मूवमेंट नहीं होगा जिससे गड़बड़ी नहीं होगी। इस बार कॉपियों की हेराफेरी के अलावा कई कॉपियों की हैण्डराइटिंग भी अलग पाई गई। एसआईटी की जांच में भी यह बात सामने आई है। अध्यक्ष ने कहा कि इस व्यवस्था के लागू होने के बाद इसपर पूरी तरह से लगाम लगेगा।
शिक्षकों को दी जाएगी ट्रेनिंग
इसप्रक्रिया को लागू करने में सबसे बड़ी मुश्किल शिक्षकों का टेक्नोफ्रैंडली होना है। आनंद किशोर ने बताया कि इसके लिए शिक्षकों को ट्रेनिंग दी जायेगी। निविदा के माध्यम से एजेंसी का चयन किया जाएगा इसके बाद वह एजेंसी शिक्षकों को ट्रेनिंग देगी। साथ ही इवैल्युएशन सेंटर पर तकनीकी टीम भी मौजूद रहेगी,जो शिक्षकों को किसी प्रकार की दिक्कत होने पर मदद करेगी। इस प्रक्रिया को अपनाने के बाद बोर्ड को एक कॉपी की जांच के लिए 50-55 रुपए का खर्च पड़ेगा। कंपार्टमेंटल परीक्षा के बाद कॉपी की जांच पर करीब 2 करोड़ रुपए का खर्च होगा।
कैसे काम करेगा सिस्टम
परीक्षा के बाद जिले की कॉपियां स्ट्रॉन्ग रूम में भेज दी जाएंगी। वहां पर बारकोडिंग के बाद स्ट्रॉन्ग रूम में लगे हाई स्पीड स्कैनर से कॉपी स्कैन होगी। फिर ये कॉपियां सर्वर में डाल दी जाएंगी,जिसे दूसरे जिले में बनाए गए गए इवैल्युएशन सेंटर पर शिक्षक लॉगइन कर खोलेंगे। और कॉपी की जांच करेंगे। इसके लिए सॉफ्टवेयर और क्लाउड सर्वर बनाने की प्रक्रिया पर काम चल रहा है। अध्यक्ष आनंद किशोर ने बताया कि रूरल इलाकों में जहां इंटरनेट की कनेक्टिविटी सही नहीं है,वहां ऑफलाइन काम करने की व्यवस्था भी रहेगी। दिन में किसी भी वक्त नेट कनेक्टिविटी मिलने पर उसे अपडेट कर दिया जाएगा।
• इस पद्धति के लागू होने के बाद पुनर्मूल्यांकन की संभावना खत्म हो जाएगी। क्योंकि कॉपियों की टोटलिंग में कोई गलती होने की संभावना नहीं रहेगी।
• परीक्षार्थियों की कॉपी जांच के समय कई बार कुछ प्रश्नों का मूल्यांकन छूट जाता था,जो इस पद्धति के आने के बाद पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। कोई भी प्रश्न अनइवैलुएटेड नहीं रहेगी।इससे स्क्रुटनी की संभावना भी खत्म हो जाएगी।
• कॉपियों के फिजिकल मूवमेंट पर पूरी तरह रोक लग जाएगी,इससे कॉपियों के इधर से उधर भेजने के दौरान होनेवाली गड़बडिय़ां भी नहीं हो पाएंगी।
• विगत वर्षों में कुछ कॉपियां गायब होने की शिकायतें भी प्राप्त हुईं थी,इस पद्धति के लागू से इस समस्या पर भी पूर्ण विराम लग जाएगा।
• एसआईटी को कॉपी बदले जाने की शिकायत भी जांच में प्राप्त हुई है,इस डिजिटल मोड में जांच करने से इस प्रकार की समस्या से निजात मिल जाएगी।
•इस पद्धति के लागू होने से परीक्षा परिणाम घोषित करने की प्रक्रिया में काफी तेजी आएगी। क्योंकि जैसे ही परीक्षक द्वारा कॉपियों की जांच पूर्ण हो जाएगी,कंप्यूटर उसे लॉक कर देगा,और परीक्षार्थी का अंक निर्धारित हो जाएगा। अबतक कॉपियों के मूल्यांकन के पश्चात परीक्षा परिणाम निकलने तक लगभग एक महीना समय लग जाता था,परंतु इस पद्धति के लागू होने के बाद एक सप्ताह के बाद ही रिजल्ट घोषित किया जा सकेगा।