आज हिंदी दिवस के सुअवसर पर अर्पणा राजपूत जी ने कुछ कहने की कोशिश की है| आपना बिहार की तरफ से आप सभी को हिंदी दिवस की बधाई और अनुरोध है, हिंदी को पढ़िए, पढ़ाइये, लिखिए और बोलिए भी| जितना हो सके हिंदी को फैलाइए, आदत बनाइए| अपनी मातृभाषा का सम्मान करें और अगली पीढ़ी को भी सिखाएं|
“वो हमेशा से मेरे अंदर थी ,पर मैं ही उसे खुद में टटोल नहीं पाया। मैं शुरू से ही बेवकूफ था और किसी ने सिखाया भी नहीं। स्कूल के दिनों में बस इतनी जानकारी हो पाती थी कि जो सबसे खड़ूस चेहरे वाले गुरूजी होंगे वह या तो हिंदी या संस्कृत पढ़ाते होंगे| पर वो भी सिर्फ पढ़ाते ,सिखाते नहीं।
हर छमाही और वार्षिक परीक्षाओं के बाद घर पर पिता जी गणित , विज्ञान और अंग्रेजी में मिलने वाले नंबरो के विषय में पूछते थे और मैं चुपचाप हिंदी और नैतिक शिक्षा (जो की हिंदी में ही होती थी ) का ही नंबर बता पाता , क्योंकि बाक़ी सारे सब्जेक्ट्स में तो बस फेल होने से बचता था और इस प्यारी हिंदी में distinctions से कम कभी नहीं आता।
प्यार उस वक़्त से ही था हिंदी से| पर जैसे बाप से प्यार चाहे जितना हो आप ना कभी समझ पाते हो ना कह पाते। वैसे ही हिंदी से कितना प्यार है , ना ही समझ पाया न कह पाया। बचपन के स्कूल दिनों में हिंदी वो दोस्त हुआ करती ,जिसे पढ़ो तो मन लगता ,लिखो तो मन लगता और पुरे रिपोर्ट कार्ड में एक वही तो थी जो नंबर के माउंट एवरेस्ट खड़े कर पाती थी।
कॉलेज में पहुँचा तो वो लड़की जिसे देखते ही मेरा दिल, दिमाग , किडनी सब उसका हो गया था को भले ही I Love You अंग्रेजी में लिख कर दिया हो , पर उस I love you के साथ वाली शायरी हिंदी में लिखी थी।
और मोहतरमा ने जब मेरे दिए फूल और मेरे खत को जब कचड़े में डाल धमकियाया था ना तो सच में , मेरे आँसु हिंदी में ही निकले थे।घर आ कर जो गम के नग्मे सुने वो हिंदी में ही सुना था।
कॉलेज के बाद जब नौकरी के लिए interview दे रहा तो मनहूस interviewer के आखिरी सवाल ,what is your hobby? पर प्यार आ गया था और इसका जवाब भी हिंदी में दिया था कि “हिंदी पढ़ना ,सुनना ,लिखना और बोलना पसंद है| और ये हॉबी नहीं, ये तो वो है जो मैं हर उस वक़्त करता हूँ जब भावनाएं extreme पर होती है ,जब दिल को कुछ और नहीं सूझता तो हिंदी सूझती है।”
जॉब के बाद शादी हुई , मेरी जीवन भर वाली मोहतरमा जिनसे कभी ना खत्म हो ने वाला इश्क़ हुआ वो भी हिंदी में ही था। जब उनके साथ कैंडल लाइट डिनर पर जाता वो ज्यादा बोलती नहीं, पर जब भी बेली के फूलों के गजरे लाता तो मुस्कुरा के कहती, “आप भी न कितना प्यार करते हैं मुझे” और वो बेशक हिंदी में ही होता था।
आज मैं अपने पोते पोतियों के साथ हूँ और जब मेरे बच्चों के बच्चे मुझसे रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनने की जिद करते हैं तो वो लाड भी हिंदी में ही आता है। बचपन के खेल जब उन्हें सीखाता हूँ तो आइस पाइस, लुका छिपी का धप्पा,कित कित की उछल कूद अंग्रेजी में चाहू तो भी नहीं सीखा सकता।
हाँ मैं बूढ़ा हो चूका हूँ, पर मेरी हिंदी, वो तो जवान है और मुझ जैसे जाने कितनों को अपने प्रेम में गिरफ्तार कर रही होगी। बस इतना कहना चाहता हूँ कि हिंदी मेरे बचपन का विषय है जिसमे मैं ज्यादा नंबर ला अपनी इज्जत बचा पाता था| कॉलेज की वो आशिक़ी थी जिसे याद कर आज भी मुस्कुरा पाता हूँ| जॉब के बाद की वो हॉबी है जिसे पूरा कर के लगता है खुद के लिए कुछ किया हूँ। हिंदी वो है जो मेरी मासूम मोहतरमा जोकि बाकी दुनियादारी नहीं समझती उन्हें भी इश्क़ समझा देती है। हिंदी और भी बहुत कुछ है मेरे लिए, आपके लिए, हम सब के लिए।
तो खुद से प्रेम कीजिये ,सब से प्रेम कीजिये क्योंकि प्रेम की भाषा हिंदी है।”