बिहारी क्रांतिकारी में हम रोज आपको बता रहे हैं बिहार के उन जाबाज़ और महान लोगों के बारे में जो देशहित के लिए अपना पूरा जीवन लगा लगा दियें। हम आजादी के 70 वाँ साल का जश्न मनाने वाले है, मगर आज हमारा देश जिस मुकाम तक पहुंच पाया उसके लिए न जाने कितने वतन के मतवालों ने अपने आप को देश के लिए कुर्वान कर दिया। उन लोगों को याद किये बिना यह जश्न अधूरा है।
उन्हीं वतन के रखवालों में से एक है बिहारी क्रांतिकारी परी अली। जिस तरह वीर कुँवर सिंह के नाम का ज़िक्र किये बग़ैर पुरे भारत मे हुए 1857 कि क्रांती का इतिहास अधुरा है ठीक उसी तरह ‘पीर अली ख़ान’ के कारनामो का ज़िक्र किये बग़ैर बिहार मे हुई 1857 कि क्रांती अधुरी है …
हाथों में हथकड़ियाँ, बाँहों में ख़ुन की धारा, सामने फांसी का फंदा, पीर अली के चेहरे पर मुस्कान मानों वे सामने कहीं मौत को चुनौती दे रहे हों। महान शहीद ने मरते-मरते कहा था, “तुम मुझे फाँसी पर लटका सकते हों, किंतु तुम हमारे आदर्श की हत्या नहीं कर सकते। मैं मर जाऊँगा, पर मेरे ख़ुन से लाखो बहादुर पैदा होंगे और तुम्हारे ज़ुलम को ख़त्म कर देंगे।” कमिश्नर टेलर ने लिखा है कि पीर अली ने सज़ाए मौत के वक़्त बड़ी बहादुरी तथा निडरता का एहसास दिलाया।
पीर अली खान हिंदुस्तान को गुलामियों की बेड़ियों से आज़ाद करनवाना चाहते थे। उनका मानना था कि गुलामी से मौत ज्यादा बहेतर होती है। उनका दिल्ली तथा अन्य स्थानों के क्रांतिकारियों के साथ बहुत अच्छा सम्पर्क था। वे अजीमुल्लाह खान से समय-समय पर निर्देश प्राप्त करते थे। जो भी व्यक्ति उनके सम्पर्क में आता, वह उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था।
वे साधरण पुस्तक विक्रेता थे, फिरभी उन्हें पटना के कद्दावर लोगो का समर्थन प्राप्त था। क्रांतिकारी परिषद्, पर उनका अत्यधिक प्रभाव था। उन्होंने धनी वर्ग के सहयोग से अनेक व्यक्तियों को संगठित किया और उनमें क्रांति की भावना का प्रसार किया। लोगों ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि वे ब्रिटिशी सत्ता को जड़मूल से नष्ट कर देंगे। जब तक हमारे बदन में खून का एक भी रहेगा , हम फिरंगियों का विरोध करेंगे, लोगों ने कसमे खाई।
3 जुलाई को पीर अली खान के घर सब मुसलमान इकट्ठे हुए और उन्होंने पूरी योजना तय की। 200 से अधिक हथियारबंद लोगो की नुमाइंदगी करते हुए पीर अली ख़ान ने गुलज़ार बाग मे स्थित प्राशासनिक भवन पर हमला करने को ठानी जहां से पुरे रियासत पर नज़र राखी जाती थी. ग़ुलाम अब्बास को इंक़लाब का झंडा थमाया गया , नंदू खार को आस पास निगरानी की ज़िम्मेदारी दी गई, पीर अली ने क़यादत करते हुवे अंग्रेज़ो के खिलाफ ज़ोरदार नारेबाज़ी की पर जैसे ही ये लोग प्राशासनिक भवन के पास पहुंचे , डॉ. लॉयल हिंदुस्तानी(सिख) सिपाहियों के साथ इनका रास्ता रोकने पहुंच गया. डॉ. लॉयल ने अपने सिपहयों को गोली चलने का हुकुम सुनाया , दोतरफा गोली बारी हुयी जिसमे डॉ. लॉयल मारा गया , ये ख़बर पुरे पटना में आग के तरह फैल गई.
पटना के कमिश्नर विलियम टेलर ने भीड़ पर अँधा दून गोली बरी हुक्म दिया जिसके नतीजे में कई क्रन्तिकारी मौके पर ही शहीद हो गए और दर्जनों घायल, फिर इसके बाद जो हुआ उसका गवाह पुरा पटना बना , अंग्रेज़ो के द्वारा मुसलमानो के एक एक घर पर छापे मारे गए , बिना किसी सबुत के लोगो को गिरफ़्तार किया गया , शक के बुनियाद पर कई लोगो क़त्ल कर दिया गया बेगुनाह लोगो मरता देख पीर अली ने खुद को फिरंगियों के हवाले करने को सोची इसी सब का फायदा उठा कर पटना के उस वक़्त के कमिश्नर विलियम टेलर ने पीर अली ख़ान और उनके 14 साथियों को 5 जुलाई 1857 को बग़ावत करने के जुर्म मे गिरफ्तार कर लिया।
चूँकि पीर अली खान और उनके साथियो ने 1857 में ‘वहाबी’ आन्दोलन का नेतृत्व किया था, क्योकि वो खुद इससे जुड़े थे , इनकी नुमाइंदगी “उलमाए सादिक़पुरीया” करते थे. इस लिए इनके मदरसे और बस्ती पर बिल्डोज़र चला दिया गया और बिल्कुल बराबर कर दिया गया , और सैंकड़ों की तादाद मे लोग काला पानी भेज दिए गए .. अंगरेज़ अपनी तरफ से पूरा बन्दोबस्त कर चुका था इसमे उस को कई साल लगे ॥
कमिश्नर विलियम ने पीर अली से कहा ‘अगर तुम अपने नेताओँ और साथियों के नाम बता दो तो तुम्हारी जान बच सकती है’ पर इसका जवाब पीर अली ने बहादुरी से दिया और कहा ‘जिन्दगी मे कई एसे मौक़े आते हैँ जब जान बचाना ज़रुरी होता है पर ज़िँदगी मे ऐसे मौक़े भी आते हैँ जब जान दे देना ज़रुरी हो जाता है और ये वक़्त जान देने का ही है..
अंग्रेजी हुकूमत ने 7 जुलाई, 1857 को पीर अली के साथ घासिटा, खलीफ़ा, गुलाम अब्बास, नंदू लाल उर्फ सिपाही, जुम्मन, मदुवा, काजिल खान, रमजानी, पीर बख्श, वाहिद अली, गुलाम अली, महमूद अकबर और असरार अली को बीच सड़क पर फांसी पर लटका दिया था।
बिहार के ऐसे वीर सपूतों को शत्-शत् बार नमन है जिसने अपने देश के लिए जान कुर्वांन कर दिया।