हाँ तो तुम क्या कह रहे थे, की तुम ऊँची जाती के हो? ह्म्म्मम्म.
अच्छा, ठीक है ये बताओ, की ये ऊँची जाती होने का सर्टिफिकेट कहाँ से लिया. हाँ मतलब किसने कहा की फलाना जाती ऊँची रहेगी और फलाना जाती नीची रहेगी. हाँ बताओ ज़रा?
अब बकलोल जैसा मेरा मुँह मत ताको, जवाब दो. कहाँ लिखा है, कौन से वेद में, पुराण में, या गीता में, महाभारत में, या कुराण में?
अजी हमने भी पढ़ा है, श्रीकृष्ण ने गीता में पुरा मोक्ष पाने का और उनतक पहुँचने का रास्ता स्टेप बाई स्टेप लिखा है, लेकिन कहीं ये नही लिखा की ये ऊँची जाती के लिए है और ये नीची जाती के लिए है.
चलो कोई एक कारन बता दो जिससे हम मान ले की तुम चूँकि ऊँची जाती के हो इसलिए ऐसा करते हो या इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा होता है?
चलो इ बताओ अभी के अभी अगर पानी बरसने लगे, और बिना छत्ता के तुम भी खड़े हो और हम भी खड़े हैं, तो खाली हम ही भींगेंगे, तुम नही भीगोगे का?
अच्छा तुम भी भीगोगे? ठीक है.
अच्छा सोचो यहाँ अभी एकदम पगलवा टाइप धूप हो जाये तो गर्मी खाली हमको लगेगा या तुमको भी लगेगा?
अच्छा तुमको भी लगेगा? ठीक है.
एगो लास्ट बात और बताओ, अगर हम दुन्नो साथे ही आग में कूद जाते हैं, तो खाली हम ही जलेंगे की तुम भी जलोगे.
अच्छा तुम भी जलोगे, बढ़िया बात.
नही-नही पगलाए नही हैं हम. तुमको तुम्हारे ही जबान में सोचे समझा देते हैं, की आगे से तुम ऊँच और नीच जाती नही करेगा.
अब सुनो गौर से, जब आग भी तुमको उतना ही जलाता है जितना हमको, जब धूप भी तुमको उतना ही गर्मी देता है, जितना हमको और जब पानी भी तुमको उतना ही भिगाता है, जितना हमको, तो तुम काहे के ऊँच जात और हम काहे के नीच जात बे?
इ समझाओ हमको. और इ बताओ की ससुरा हम पागल की तुम पागल. हम इ सब बात रिजर्वेशन लेने के लिए नही कर रहे समझा. और न ही कल हमको मंडल-कमंडल हल्ला कर-कर के नेता ही बनना है. हम जा रहे हैं, सरहद पर, देस का सेवा करने. वहाँ कोनो ठिकाना नही है, मर-मुरा जायेंगे. तो जब तिरंगा में लिपटल आयेंगे न अपना घर, तो ससुरे चिता जलने देना कम से कम. हल्ला मत करना की ऊँची जाती के ज़मीन पर नीची जाती का चिता नही जलने देंगे.
हमको अपना चिंता नही है, कम से कम जो बेसहारा बाल-बच्चा को छोड़ जायेंगे न, उनके सामने ऐसा मत कर देना की उ लोग भी सोचने लगे की उसका बाप सैनिक पहले था या नीची जाती वाला पहले?
अगर चिता ही नही जलने दोगे तो खाली कह देने भर से नही न होगा की “शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा.” चलो अब चलते हैं. कश्मीर जा रहे हैं, १०-२० ससुर के नाती को तो जन्नत पहुंचाए के ही लौटेंगे अगली बार छुट्टी में. जय हिन्द. भारत माता की जय. तुम लोग सुतो आराम से बे, हम हैं न, पाकिस्तान और चाइना को तो हम अकेले ही सीना पर गोली मार कर और खा कर संभल लेंगे.
नोट: ये कहानी भारत माता के वीर सपूत वीर सिंह को समर्पित है, जो कश्मीर में ड्यूटी निभाते-निभाते शहीद हो गए. और जब तिरंगे में लिपटा शरीर उत्तरप्रदेश उनके घर लाया गया तो ऊँची जाती वालों ने उनके चिता के लिए सरकारी ज़मीन का इस्तेमाल करने से मना कर दिया, सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो नीची जाती के थे. आप भी सोचिये, की आप शहीद का साथ देंगे या अपनी जाती का.
लेखक- मुकुंद वर्मा