हिंदी दिवस नहीं आया अभी| हिंदी पखवाड़ा भी दूर है| फिर भी सोशल मीडिया के मार्किट में हिंदी का तवा गरम है| इस बार किसी नेता के अमेरिकी सदन में भाषण दे कर तालियाँ बटोरना मुद्दा नहीं है| न ही किसी हिंदी सिनेमा को ऑस्कर मिला है| न ही हिंदी पुस्तक को पछाड़ कर कोई इंग्लिश पुस्तक ने बाजी ही मारी है| ना ही किसी स्वयंसेवी संस्था ने कोई मुहीम ही चलाई है| तो फिर बात क्या है? चल क्या रहा है? हिंदी पर एक बार पुनः बहस , क्यों?
दो-तीन दिन पहले कपिल शर्मा का नया विडियो लॉन्च हुआ है| एक मोबाइल कंपनी का एड है जिसमें हिंदी बोल के अंग्रेजी वाले को जमकर लथाड़ा गया है| कपिल ये काम पहले भी करते आये हैं| इस बार अंग्रेजी के सामने हिंदी को कमतर समझे जाने को लोग सीरियसली ले रहे हैं| इससे पहले चेतन भगत ने भी हाफ गर्लफ्रेंड में इंग्लिश न बोल सकने वाले बिहारी युवक को मजाक का मुख्य पात्र बताया था| एक तरह से इंग्लिश को विकास के लिए अत्यंत-आवश्यक करार देते हुए उन्होंने युवक के इंग्लिश सुधारने की कहानी कही थी| लेकिन इस बार जनता इंग्लिश के खिलाफ है, हिंदी और अपनी बोलियों के पक्ष में बोल रही है|
ये देखिये विडियो –
अब बात ये कि हम क्यों आ खड़े हुए हैं इस चर्चा में? एक और विडियो दिखाते हैं-
जून के पहले सप्ताह में शूट हुआ ये विडियो आपको आश्चर्यचकित करेगा| इसमें जो सामने नजर आ रहे हैं, हालिया कपिल जैसी भूमिका में, वो हैं केशव झा जी| बहुत पहले इस विषय को ध्यान में रखते हुए इन्होंने तैयारी की थी| फेसबुक पेज पर हम पहले भी शेयर कर चुके हैं(20 जून को- https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1051374148289157&id=314418598651386), आज फिर करते हैं|
यहाँ विषय व्यापक है, व्यक्तिगत अनुभव के साथ भावनाएं कूट-कूट कर भरी हैं केशव जी ने| इन दोनों की टैग-लाइन एक ही है|
इन दोनों वीडियोज में अंतर सिर्फ इतना है कि एक कॉमेडियन होते हुए भी कपिल ने बात को गंभीरता से रखा है जबकि केशव जी ने थोड़े मजाकिया लहजे में बात स्पष्ट तौर से समझाने की कोशिश की है| हालाँकि दोनों ही परिस्थितियों में मुद्दे की संजीदगी से कोई समझौता नहीं किया गया है|
मकसद ये नहीं कि इन दोनों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाये| हमारी टीम को गर्व इस बात का है कि हममें से एक-एक जन समाजिक विषयों को लेकर इतने सजग हैं कि समाज से जुड़े हर तबके की बात आप तक सफलता से भिन्न-भिन्न माध्यमों से पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं| गर्व इस बात का भी है कि केशव झा जी हमारी टीम के अटूट अंग हैं जिनकी कलात्मकता का नमूना आप हमारे वीडियोज में देखते आ रहे हैं| बिहार से जुड़ी हर समस्या, हर मुद्दा आप तक लाने को तत्पर और बाध्य है ये टीम|
हम बिहार से हैं, और जानते हैं किसी हिन्दीभाषी का इंग्लिश बोलने वालों के बीच क्या हश्र होता है| कैसे उसकी सारी मेहनत उसकी बोली और लहजे के सामने फीकी पड़ जाती है| हमने देखा है छोटे-शहर वालों का बड़े-शहरों में अपनी काबिलियत के दम पर जाना, और इंग्लिश की लज्ज़त फीकी होने की वजह से वापस आ जाना| हम समझ जाते हैं कोई सरल-सीधा गाँव का रहनेवाला जब इंग्लिश बोलने की कोशिश कर रहा हो तो कैसे उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है| अनपढ़-गंवार तक कह दिया जाता है|
भारत ही क्यों पाकिस्तानी क्रिकेटर्स को भी कई बार केंद्र में रखा जाता है, ट्रॉल्स निकलते हैं उनपर, उनकी कमजोर इंग्लिश को लेकर|
भाषाएँ अभिव्यक्ति का एक माध्यम हैं| हिंदी-इंग्लिश ही नहीं, हर भाषा-हर बोली सम्मान की अधिकारी है| भाषाओँ में टैलेंट और भाव नहीं बांटे जा सकते| सामने वाला किसी भाषा को नहीं समझ पा रहा तो उसकी मदद करें, बजाये उसके आत्मविश्वास का हनन ही कर देने के| उसको सिखने का मौका दें बजाये उससे हार स्वीकार करवाने के| उसके प्रयासों की कद्र करें बजाय उसके भाषा ज्ञान और लहजे की वजह से उसकी काबिलियत को ‘फेल’ का प्रमाणपत्र थमा देने के| उसकी सरलता को बरकरार रखें बजाये उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने के|
टैलेंट को भाषाओँ की लकीर में बाँधने का प्रयास न करें| इनसे बाहर निकलना आगे बढ़ने के लिए अत्यंत आवश्यक है| यकीन मानिये आप दुनिया की सारी भाषाओँ में पारंगत कभी नहीं हो सकते| आपको इन भाषायों का सम्मान करना ही होगा| केशव झा जी भी यही कहना चाहते हैं, कपिल शर्मा भी यही कहना चाहते हैं और आपन बिहार की टीम के साथ-साथ पूरा बिहार भी यही कहना चाहता है|
सिर्फ इसलिए कि हम इंग्लिश एसेंट में फीट नहीं बैठते- #मत_बदनाम_करो_बिहार_को|