मेरी छोटी बहन रूबी, ये चिट्ठी मैं तुम्हारे नाम लिख रहा हूँ. तुम मुझे जानती नही हो, लेकिन सारे रिश्ते क्या खून के ही होते हैं. कभी-कभी कुछ रिश्ते ऐसे ही बन जाते हैं, बनाने नही पड़ते.
पहली बार तुम्हारा इंटरव्यू देखा था टीवी पर, जब तुम अपने सब्जेक्ट्स के नाम सही से नही बता पायी थी. कई लोगों ने उस इंटरव्यू को देखा, बार-बार देखा, सबको दिखाया और ठहाके लगाये.
मगर जब मैंने तुम्हे उस विडियो में देखा, तो मेरा यकीन मानो, मुझे ज़रा भी हँसी नही आई, बल्कि मुझे दुःख हुआ. थोडा दुःख तुम्हे देख कर हुआ, और थोडा अपने इस शिक्षा व्यवस्था या एजुकेशन सिस्टम को देख कर हुआ.
उसके बाद जिस तरह से पूरे देश के मीडिया ने तुम्हारे चेहरे को प्राइम टाइम में सिर्फ TRP के लिए इस्तेमाल किया, वो तो और भी शर्मनाक है. किसी ने ये नही सोचा की तुम भी किसी की बहन होगी, बेटी होगी, किसी की दोस्त होगी. इस तरह से मीडिया ट्रायल चला कर तुम्हारी और तुम्हारे माँ, बाबूजी, परिवार के इज्जत की धज्जियाँ उड़ाई गयी. मै पूछता हूँ इन मीडिया वालों से की आखिर तुम्हारा कसूर क्या था. क्या तुमने किसी का खून किया था, क्या तुमने किसी को बम से उड़ाया था या फिर तुमने हिन्दू-मुसलमान के दंगे प्लान किये थे. और ये मीडिया वाले किसानों की आत्महत्या और भूखमरी क्यूँ नही दिखाते, क्यूँ नही दिखाते जब गुजरात में भी नक़ल की खबरें आती है. क्या बिहार को छोड़कर पुरे देश में राम राज्य है क्या. तुम्हे बताता हूँ ये मीडिया बस खबरें बेचने लगी है आजकल, खबरें दिखाना इनका काम नही रहा अब. तुम इन्हें भले माफ़ कर दो, लेकिन मैं इन्हें कभी नही माफ़ कर पाउँगा.
फिर तुम्हे फेसबुक और whatsapp जोक्स का शिकार बनाया गया. मै पूछता हूँ इन सोशल मीडिया पर बकैती करने वालों से की क्या तुम्हारे घर में भी किसी के साथ ऐसा होता तो क्या तब भी तुम ऐसा ही करते. और ये जोक्स बनाने और फॉरवर्ड करने वाले कोई बाहर के लोग नही हैं, ये वही तुम्हारे बिहारी भाई-बहन हैं जो दिल्ली-मुंबई में एक रूम की खोली ले कर रहते हैं और 5000 के मोबाइल में 50 रुपैये का डाटा पैक भरवा के अपने को महान क्रांतिकारी समझते हैं. कभी तुम इनसे मिलो तो पूछना की भैया आप तो पढ़ के बाहर चले गए अच्छी नौकरी ढूँढने, काश मुझे भी अपने साथ ले जाते तो ये दिन न देखना पड़ता, फिर मै भी स्टीफेंस और मिरांडा हाउस जैसे कॉलेज में पढ़ पाती. फिर शायद उन दीदी जैसा बन पाती, जो आज फाइटर प्लेन उड़ाने वाली पहली भारतीय महिलाओं में शामिल हुई हैं.
लेकिन सबसे ज्यादा दुःख मुझे तब हुआ जब तुम्हे जेल भेज दिया गया. की क्या हमारी सरकार अंधी हो गयी है या पुलिस वाले बेकार बैठे हैं. किस जुर्म में तुम्हे जेल भेजा गया, मुझे बताए कोई. मुझे पूरा यकीन है की शायद ही तुम्हे घर में 500 रुपैये से ज्यादा मंथली पॉकेट मनी मिलती होगी, फिर तुमने भला कहाँ से 15-20 लाख रुपैये दिए होंगे. अगर तुम्हारे बाबूजी ने ये रुपैये दिए हैं, तो जेल उनको जाना चाहिए. और उनको अकेला भला क्यूँ, ये जो कॉलेज के प्रिंसिपल हैं, विश्वविध्यालय के प्रोफेसर हैं, किरानी है, चपरासी है, और जो-जो लोग इन सब में शामिल हैं, पहले उन्हें जेल भेजना चाहिए. तुम तो इस भ्रष्ट सिस्टम की बस विक्टिम हो, शिकार हो, गुनाहगार नही हो. गुनाहकार तो वो है जो दशकों से इस खेल को राजनीतिक संरक्षण और पैसे के दम पर खेलते आ रहे हैं. कोई उन्हें जेल क्यूँ नही भेजता. क्यूँ तुम्हे जल्दबाजी में रिमांड होम की जगह सीधे जेल भेज दिया गया, किसी को बलि का बकरा बनाने की इतनी जल्दबाजी थी क्या. क्यूँ सरकार के शिक्षा मंत्री नैतिक स्तर पर जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा नही देते, क्या नैतिकता की शिक्षा उन्हें नही मिली है क्या. जिस तरह से तुम्हे इमोशनल टार्चर का सामना करना पड़ रहा होगा, उसकी कोई भरपाई करेगा क्या.
रूबी, मेरी बहन, तुम बस इस भ्रष्ट सिस्टम का शिकार हुई हो. तुम गुनाहगार नही हो, तुम बेक़सूर हो, और ये बात हमेशा याद रखना, क्यूंकि गुनाहगार तो हम हैं, हमारी शिक्षा व्यवस्था में बैठे वो लोग हैं, जिन्होंने सरस्वती के मंदिर को, लक्ष्मी का मंदिर बना, सरस्वती को सड़क पर धकेल दिया है. जेल तो हमें जाना चाहिए. आज भले तुम्हारे साथ ज्यादती हो रही है, लेकिन वो दिन भी आएगा जब ये शिक्षा के व्यापारी जेल जायेंगे और तुम्हे इन्साफ मिलेगा, इस एजुकेशन सिस्टम को इन्साफ मिलेगा. जब तुम्हारी तरह गाँव में रहने वाली मेरी और बहनें पढ़ेंगी और देश में अलग-अलग ऊँचा मुकाम हासिल करेंगी. वो दिन आएगा, जरुर आएगा, ये एक भाई का तुमसे वादा है.
तुम्हारा भाई
मुकुंद वर्मा