पटना: किसी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है। सभी लोग एक ही समाज में रहते है मगर सबकी पहचान अलग-अलग होता है। कोई अपने बुरे कर्मों के लिए चर्चा में होता है तो कोई उसके द्वारा किये गये अच्छे कामों के लिए चर्चा में रहता है।
ऐसे ही चर्चा में रहने वालों में एक नाम है बिहार पुलिस का जबाज अफसर एसपी शिवदीप वमन लांडे।जो हमेशा अखबासुर्खियों में रहते है, कभी अपने बहादुरी और ईमानदारी के लिए तो कभी अपने समाज सेवा के लिए।
जी हाँ, बिहार पुलिस का यह एसपी सिर्फ अपराधियों को पकड़ता नहीं है बल्कि समाज सेवा के लिए भी हमेशा तत्पर रहता है। आप में से बहुत कम लोगों को ही यह पता होगा की शिवदीप लांडे खुद गरीबी से निकले हुए है। वह गरीबी के दंश को जानते है और उसको महसूस करते है। इसीलिए हमेशा गरीबों के मदद के लिए वह तैयार रहते है।
शिवदीप लांडे पने कुल वेतन का 60% NGO को दान कर देते है जो गरीब-अनाथ बच्चों को आसरा प्रदान कराता है और गरीब लड़कियों के शादी करवाता है।
शिवदीप लांडे कहते है कि “बकरीकी चोरी की शिकायत करने वाली एक सत्तर साल की वृद्धा कड़कती ढंड में थाने और एसपी दफ्तर के चक्कर लगा रही है तो बात बकरी की चोरी की तक ही सीमित नहीं है। संवेदनशीलता यह समझने की है कि उसकी बकरी नहीं बल्कि उसकी पूरी आजीविका ही चोरी हो गई है। हर कोई अपने स्तर से समाज के लिए कुछ कर सकता है। इसके लिए जरूरी नहीं है कि आप पुलिस सेवा में हों। कोई विद्यार्थी यदि किसी वृद्ध या लाचार को सड़क पार करने में मदद करता है तो यह भी बड़ी समाज सेवा है।”
इसी सब के कारण शिवदीप लांडे और सब पुलिस अफसर से काफी अलग है और बिहार में सबसे अलग है। बिहार के युवा लांडे को अपना आदर्श मानते हैं और उनके जैसा बनने का सपना देखते हैं तो माता-पिता भी अपने संतान को लांडे जैसा बनाना चाहते हैं।
हाल ही में कार्यालय के बाहर एक पिता अपने नवजात बच्ची के साथ आया इस उम्मीद से की लांडे उसका नामकरण करे। ताकि वो उनके जैसी बन सके। खुद लांडे उस पल भावुक हो गये।
वे कहते है ‘
अनेकों उदाहरणों के बीच हम बड़े होते हैं। कुछ हमारे अतीत से और कुछ हमारे बीच से । इन सब सच्चे-झूटे उदाहरणों के साथ हम अपनी भी एक अलग दुनिया बनाते हैं। एक ऐसी दुनिया जहाँ हम अपने हीरो जैसा बनना चाहते हैं। सबसे अच्छा और सबसे अलग। हम लगातार कोशिश भी करते हैं अपने उस सपने की दुनिया को इस दुनिया में जीने का ।
पर दोस्तों, सबसे सुकून तब लगता है जब कोई आपको बोले की आप उनके उदाहरण हो, कोई आप जैसा बनना चाहता है, कोई अपने बच्चे को आपके जैसा बनाना चाहता है। यकीन मानिये जब मेरे कार्यालय के बाहर एक पिता अपने नवजात बच्ची के साथ आया इस उम्मीद से की मैं उसका नामकरण करूँ ताकि वो मेरे जैसी बन सके तब न चाहते हुए भी मेरे आखों में नमी आ गयी थी। मेरे को लगा की शायद मैंने अभी तक अपने वसूलों पे चल कर सही किया है, आज शायद मेरी माँ के संस्कार और तपस्या सार्थक हुआ है।