#MatBadnaamKaroBiharKo
इस कैम्पेन की शुरुआत से ही जुड़ी हूँ।
अब तक डीपी नहीं बदल पायी, अब तक कोई फ़ोटो भी क्लिक नहीं किया (कुछ टेक्निकल प्रॉब्लम है, माफ़ी!), फिर भी इसके समर्थन में हूँ, पहले दिन से ही, एक आमजन की तरह। खैर, अब तक सोशल मिडिया को पता चल चुका है कैसे और कौन-कौन लोग इसको सपोर्ट कर रहे हैं।
सब अपनी-अपनी तरह से कोशिश कर रहे हैं ‘मैं आपके साथ हूँ।
ये आवाज इस कैम्पेन से जोड़ पाएं।
लेकिन मैंने पहले दिन से ही नोटिस किया, कमेंट्स देख कर, कुछ ऐसे जन भी हैं जो इस बड़े प्रयास को महज पब्लिसिटी का बहाना मान बैठे हैं। वो कहते हैं “इसकी कोई जरूरत ही नहीं”
सच कहूँ, आप सही कहते हैं “जरूरत ही नहीं थी ऐसे कैम्पेन की”
लेकिन इसे मिल रहा समर्थन ये साबित कर रहा है कि कितनी जरूरत है इस कैम्पेन की।
मैं जिस पीढ़ी की हूँ, सुन-सुन के थक चुकी हूँ वो सारे इल्जाम जो आप लगाते आये हैं बिहारियों पर। मैं वो बातें भी अब नहीं कहना चाहती जो आपके जवाब में हमारे बड़े कहते आये हैं, वही गौरवशाली इतिहास की बातें।
ऐसा सिर्फ मैं नहीं, एक पूरी पीढ़ी सोचती है।
क्योकि ये पीढ़ी जानती है, वो बातें अब कागज़ी हो चलीं हैं। हममें से कितने हैं जो शेरशाह शुरी के विकास का अंदाजा भी लगा पाएं। उस वक़्त के बने पहले जीटी रोड को अब हम तोड़-फोड़ के आगे निकल चुके हैं। शेरशाह के मकबरे पर जा कर अब भी हम उस गर्व को महसूस जरूर कर सकते हैं। पर हमारी पीढ़ी अपना गर्व खुद तलाशना चाहती है। हाल में पड़े धुल को साफ़ करना चाहती है। कहना चाहती है कि आपके इल्जाम भी कागज़ी हो चले हैं, हमारे इतिहास की तरह।
ये पीढ़ी नहीं चाहती कि आप उसे कहें “अरे यार! तुम बिहारियों की राजनितिक समझ बचपन में ही बन जाती है, कि तुमने सम्राट अशोक का मगध का विस्तार देखा है। तुमलोग वैज्ञानिक हो, क्योकि तुम्हारे यहाँ शून्य का आविष्कार करने वाला जन्मा।”
किताबी दुनिया से बाहर आईये तो नज़र आये वो मेहनत जो करके यहाँ के बच्चे खुद को राष्ट्रीय परिदृश्य में फिट करने की कोशिश रहे हैं। आप देखेंगे यहाँ परिवार का वो संघर्ष भी कि कैसे माँ-बाप अपने कलेजे के टुकड़े को दूर भेजते हैं ताकि वो पढ़ सके, कमा सके।
हमारा इतिहास हमें आज किसी तरह के विकास का ढांचा नहीं देता। हमें भी ये सब पाना होता है अपनी इच्छा शक्ति के दम पर, बिलकुल आपकी तरह।
मुझे कई लोग पूछते हैं “आपको नहीं लगता, आप थोड़ी अलग हैं, मतलब बिहार में रह के, बिहार की लड़की …..।”
सवाल पूरा नहीं होता, जवाब पूरा होता है, “नहीं, मुझे नहीं लगता।”
एक और वाकया सुनाती हूँ।
किसी ने मुझे बिहार न आने और यहाँ के लोगों से नफरत होने की अलग ही वजह बताई।
“मैं बिहार नहीं आना चाहता। बिहारी हर जगह ऊपर से नीचे तक की पोस्ट पर हैं और यहां के लोकल्स को नीची निगाह से देखते हैं, या शायद खुद को बड़ा समझते हैं।”
अब इस वजह का क्या जवाब दूँ, इससे ज्यादा क्या कहूँ कि वो उस जगह इसलिए हैं क्योकि वो जगह वो डिज़र्व करते हैं। उनकी मेहनत वो डिज़र्व करती है।
क्या कहूँ मैं कि आप एकबार बिहार आकर देखो, कैसे लड़के 10वीं पास करते ही सरकारी नौकरी के लिए घर से दूर रहने लगते हैं। कैसे यहाँ किसी पार्क, किसी कॉलेज में सरकारी नौकरी से इतर प्रेम कहानियां नहीं बनतीं। हर मुमकिन जगह, जहां एक ग्रुप बैठ सके, एसएससी CGL की ही बातें होतीं हैं। यहां तक कि रेलवे प्लेटफार्म तक पर सुबह 4 बजे से शाम के 6 बजे तक लड़के पढ़ते रहते हैं। आप यकीन ही तो नहीं करोगे। परिवार को खुश करने के लिए यहां लड़के ये नहीं सोचते कि उनका टैलेंट क्या है, उनका शौक क्या है। सीमित खर्चे में उन्हें बड़ा आदमी बनने के सपने दिखाए जाते हैं बचपन से। वो खुद से भिड़ते आये हैं एक इस ख़ुशी के लिए, इस गर्व के लिए। आप नहीं समझोगे।
बिहार फिर भी आपका स्वागत करेगा, कभी जरूर आना।
बिहार की लड़कियाँ या लड़के किसी से कम हों, ये क्यों सोचते हैं आप, मैं नहीं जानती। लेकिन शायद यही वजह है इस कैम्पेन के इस कदर छा जाने की, इस कदर पसंद किये जाने की।
हमारी कोशिश हमेशा से रही है “बिहार” को अलग समझने वालों को बताएं, “हाँ भइया! तुम्हारे जैसे ही हैं हम। हमें एलियन ना समझो। क्या हुआ जो हममें से कितने IIT वाले, कितने IIM वाले हैं। सच तो ये भी है कि हममें से कई बिहार बोर्ड में fail होने वाले भी हैं। हममें सत्यम है, हममें बच्चा राय को पैसे खिलाने वाले लोग भी हैं। हमें विद्वता के शिखर पर न रखो। हो सकता है हममें से कई या मैं खुद उस शिखर तक न पहुँच पाऊँ, तो क्या आप इसमें मेरी कमी गिनने की बजाए सीधा मेरी मातृभूमि की, मेरी परवरिश की कमियाँ गिनोगे?
आप तो जानते ही हो, बिहारी कर्मठ होते हैं तो क्या बिहारी आलसी नहीं हो सकते? होते हैं यार… ये बेहद व्यक्तिगत मसला है।
हम तो चाहते हैं आप हमारे सुख-दुःख के साथी बनो। अपनी उम्मीद, अपने अवसाद सब साझा कर सकें हम, जैसे अभी-अभी आपने पंजाब के लिए महसूस किया। हाँ! वैसे ही।
हम तो आपको महसूस करते हैं, आप कब शुरू करोगे हमें महसूस करना।”
कई साल पहले कुछ बिहारी मजदूरों को एक वीराने में छोड़ दिया गया था। परिणामस्वरुप एक देश “मॉरीशस” निकल कर हमसब के बीच अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर हो गया।
ये कोई फेयरी टेल का किस्सा नहीं, वरन् हकीकत है।
ऐसा ही कुछ बिहार अपने लिए भी करना चाहता है। अपने पर्यटन स्थलों को खूबसूरत, सुगम एवं सुविधाजनक बनाना चाहता है।
बिहार चाहता है कि इसके बारे में अफवाह न उड़ाई जाए। सच्ची बातें हों। कड़वी बातें भी हों। लेकिन बिहार आना-जाना न छोड़ा जाये।
ये बदनामी अब हमारी पीढ़ी तो बर्दाश्त नहीं ही करेगी न … रियेक्ट तो करेगी ही, कर भी रही है।
खुले विचारों के साथ मैं भी समर्थन देती हूँ इस कैम्पेन को।
और सुनो, कय बार कहें…
‘मत बदनाम करो बिहार को’।
जय हिन्द! जय बिहार
-नेहा नुपूर