पटना: बिहार में विधान परिषद की खाली सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने अपना प्रत्याशी उतार दिया है। जदयू व राजद ने दो-दो तथा कांग्रेस व भाजपा ने एक-एक उमीदवार को मैदान में उतारा है।
कुछ दिन पहले से ही यह कयास लगाय जा रहें थे कि राजद सिवान के पूर्व बाहुबली सांदन शहाबुद्दी की पत्ति को MLC का टिकट देगी मगर जब राजद के तरफ से नाम जारी किया गया तो शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब का नाम शामिल नहीं था।
सूत्र के हवाले से खबर आ रही है कि हिना राज्यसभा सदस्य पद के लिए दबाव डाल रही हैं, लेकिन सिवान जेल में शहाबुद्दीन के दरबार लगाने तथा उनके करीबियों के नाम पत्रकार हत्याकांड में उछलने के बाद हिना को लेकर राजद बैकफुट पर आ गई है। उन्हें समझाने के प्रयास जारी हैं। अगर बात बन गई तो ठीक, अन्यथा अंतिम क्षणों में भी उलटफेर हो सकता है।
आइए नजर डालते हैं इन प्रत्याशियों पर एक नजर…
गुलाम रसूल बलियावी (जदयू)
पहले रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे। वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में 29 सीटों पर जीत के बाद पासवान ने इन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया था, लेकिन दूसरे दलों ने कोई रूचि नहीं ली। 2009 के विधानसभा चुनाव से पहले पासवान ने जब लालू प्रसाद से हाथ मिला लिया तो खफा बलियावी ने जदयू का दामन थाम लिया। इसके बाद जदयू ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया।
सीपी सिन्हा (जदयू)
सीपी सिन्हा बैंक की नौकरी छोड़ समाजवादी आंदोलन में शामिल हुए। उन्होंने समता पार्टी की टिकट पर 1995 में पाली से चुनाव लड़ा, परन्तु जीत नहीं पाए। समता पार्टी के जदयू में 2003 में विलय के बाद वे जदयू किसान प्रकोष्ठ के अध्यक्ष बनाए गए।
उन्होंने जदयू छोड़ 2007 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का दामन थामा। फिर 2008 में वह उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय समता पार्टी में शामिल हुए और इस दल से 2009 में बांका से लोकसभा का चुनाव लड़ा। चुनाव में उन्हें जीत हासिल नहीं हो सकी। चुनाव बाद वह फिर जदयू में वापस आ गए। 2012 से 2014 तक राज्य किसान आयोग के अध्यक्ष रहे हैं।
रामचंद्र पूर्वे (राजद)
बुरे समय में लालू प्रसाद का साथ देने वाले, राजद के सबसे बफादारों में से एक है रामचंद्र पूर्वे। राजनीतिक और सामाजिक मामलों की अच्छी समझ रखने वाले पूर्वे पूर्ववर्ती लालू-राबड़ी सरकार में शिक्षा मंत्री रह चुके हैं और राजद के तीन बार निर्विरोध प्रदेश अध्यक्ष चुने गये है। पूर्वे को विभिन्न मुद्दों पर तर्कसंगत तरीके से पार्टी की बात रखने में माहिर माना जाता है।
कमर आलम (राजद)
वर्ष 1987 में छात्र जीवन से ही कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत करने वाले राजद के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव कमर आलम पिछले 12 वर्षों से राजद के राष्ट्रीय महासचिव थे। बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले आलम इसके पहले कांग्रेस रहते हुए सीताराम केसरी के भी बेहद करीबी थे।
उनके निधन के बाद रामविलास पासवान के साथ भी रहे, लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा तो साल भर बाद लालू का दामन थाम लिया। विभिन्न दलों में 30 वर्षों से संगठन के काम देखते आ रहे हैं। 1990 में जगन्नाथ मिश्रा के समय कांग्र्रेस अल्पसंख्यक सेल के प्रदेश अध्यक्ष भी थे।
अर्जुन सहनी (भाजपा)
दरभंगा जिले से आने वाले सहनी इसके पहले भाजपा प्रदेश संगठन में विभिन्न पदों पर रह चुके हैं। पूर्व में भाजपा संगठन में प्रदेश मंत्री रह चुके सहनी वर्तमान में बिहार भाजपा चुनाव समिति के सदस्य भी हैं। विधान परिषद में भाजपा के प्रत्याशी अर्जुन सहनी प्रारंभ से ही भाजपा से जुड़े रहे हैं। फिलहाल वे भाजपा मत्स्यजीवी मंच के प्रदेश अध्यक्ष हैं।
तनवीर अख्तर (कांग्रेस)
कभी राजीव गाँधी के करीबी रहे प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष तनवीर अख्तर का कांग्रेस से नाता 1985 से है। एनएसयूआइ से जुड़े रहे अख्तर 1991 में जेएनयू के अध्यक्ष भी बने। 1996 में ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस के सचिव व शेरघाटी गया के निवासी तनवीर 2000 मे बिहार यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बने।