जब टूटने लगे हौसले तो बस ये याद रखना,
बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते,
ढूँढ़ ही लेते है अंधेरों में मंजिल अपनी,
जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते…..!
इस पंक्ति को सच कर दिखाया है बिहार के सहरसा जिले की एक बेटी ने। दुनिया को बता दिया की जैसे जूगनू को अंधरों में अपनी मंजिल खोजने के लिए लिए रौशनी की जरूरत नहीं होती उसी तरह काबलियत किसी संसाधन का मोहताज नहीं होता।
सहरसा जिले के बख्तियारपुर बस्ती निवासी मो रब्बा की बेटी तैयब्बा प्रवीण ने इंटर कला की परीक्षा में सूबे में चौथा स्थान लाकर सहरसा जिला ही नहीं बल्कि पूरे कोसी का मान बढ़ाया है.
दर्जी का काम करने वाले पिता और मां को भी एक बेटी पर गर्व करने का ऐसा अवसर दे दिया है जिसे जानकर लाखों वैसे युवा प्रेरणा ले सकते हैं जो अपनी विपरीत परिस्थियों को कोस कर संघर्ष पथ पर बिना मंजिल तय किए ही हार मान लेते हैं.
पिता दिल्ली में दर्जी का काम करते हैं तो मां सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडलीय अस्पताल में आशा कार्यकर्ता है. साधारण परिवार में बढ़ी और पढ़ी प्रवीण ने बता दिया आँखों में सपना हो, उसे पाने की चाहत हो और उसके लिए जुनून हो तो सफलता आपकी कदम चूमेगी।
बचपन से मेधावी रही तैयब्बा प्रवीण ने वर्ग 8 तक की पढाई गांव के ही मध्य विद्यालय फकीरटोला से किया. उसके बाद प्रोजेक्ट कन्या उच्च विद्यालय सिमरी बख्यितारपुर से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास कर इंटर की परीक्षा डीसी कॉलेज सिमरी बख्तियारपुर (रोल नम्बर 30375) से दी और 398 अंकों का बेहतरीन अंक प्राप्त कर राज्य में चौथा स्थान हासिल किया है।
बेटी के इस सफलता से पिता को अपनी बेटी पर गर्व है। माँ के खुशी का अंदाजा नहीं, वह इतनी खुश है कि रिजल्ट सुनते ही अपनी बेटी को अपने गले से लगा ली। आस पास के लोग भी उसके इस सफलता पर गर्व कर रहे है। लोग आब बात कर रहें है कि बेटी भी बेटा से कम नहीं। चारों तरफ से प्रवीन को इस सफलता के लिए बधाई मिल रही है।
प्रवीन इस सफलता से अभी संतुष्ठ नहीं उसे तो और दूर तक का सफर तय करना है। प्रवीण की इच्छा आगे की पढाई कर आइएएस बनने की है. कहती है कि देखना में एक दिन आईएएस बनकर अपने राज्य का नाम रौशन जरूर करूंगी.
पाना है जो मुकाम वो अभी बाकि है,
अभी तो आये है जमी पर ,आसमां की उड़न अभी बाकि है…
अभी तो सुना है सिर्फ लोगो ने मेरा नाम,
अभी इस नाम की पहचान बनाना बाकि है। ?
Photo via – DBN