किसी को इतना ना डराओ की उसके अंदर से डर ही खतम हो जाये ! एक बहादुर बिहारी की कहानी
“किसी को इतना ना डराओ की उसके अंदर से डर ही खतम हो जाये” । 14 साल की उम्र से समाज के ठेकेदारों और मानवता के दुश्मनों से लड़ाई लड़ रहे बिहार के लाल कुन्दन श्रीवास्तव की कहानी आज आप सब के लिए ले के आई है आपना बिहार ।
“कुन्दन श्रीवास्तव” एक जाना माना चेहरा जिसने मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में अब तक हजारों लोगों की आवाज़ बन के उनको न्याय दिलायी है । कुन्दन, रक्सौल, चंपारण (बिहार) मे जन्मे, तथा पले बढ़े हैं। पेशे से इंजीनियर कुन्दन देश के सबसे युवा समाजसेवियों मे शुमार हैं । इनके साहसिक कार्यों की वजह से इन्हे राष्ट्रपति पुरस्कार, यूनिवर्सल ह्यूमेनिटी, पीठाधीश पुरस्कार, iVolunteer Award’ 2014, ग्लोबल डायमोण्ड अवार्ड, समेत कई और सामाजिक क्षेत्र के सम्मान तथा पुरस्कार से नवाजा जा चुका है ।
कुन्दन ने अपने जीवन मे बहुत कुछ खोया है और आज तक कभी हार नहीं मानी है । मात्र 14 साल की उम्र मे जब कुन्दन ने खराब शिक्षा व्यवस्था के लिए ब्यूरोक्रेसी और माफिया के खिलाफ आवाज़ उठाई तो उन का अपहरण कर लिया गया था । 7 दिन उन समाज के ठेकेदारों के बीच उनकी दरिंदगी को झेलने के बावजूद कुन्दन ने साहस दिखाया और उनके चंगूल से भाग निकले । ये साहसिक काम आसान नहीं था और यही वजह रही की उन अपहरणकर्ताओं की गोली इनके पैरों मे लगी और बुरी तरह घायल होके भी कुन्दन ने खुद को सिर्फ मरने से ही नहीं बचाया बल्कि आज के युवा पीढ़ी के लिए एक उदाहरण बन के सामने आए । वहाँ से बच निकलने के बाद कुन्दन ने ठान लिया था की उन्हे समाज के इन दरिंदों को जड़ से उखार के फेकना है चाहे इस क्रम मे उनको कितनी भी यातनाएँ क्यूँ ना झेलनी पड़े ।
इस घटना ने उनके जीवन मे एक नया मोड़ ले लिया था । कुन्दन अपनी स्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के बाद इंजीन्यरिंग की पढ़ाई करने के लिए देहरादून चले गए । इस बीच उनके छोटे भाई की मौत कैंसर की वजह से हो गयी और पापा का भी देहांत हो गया । इन मुश्किलों के सामने आने की वजह से कुन्दन टूटे जरूर लेकिन कभी हार नहीं मानी । उन्होने समाज के लिए अपने संघर्ष को जारी रखा और अपनी छवि एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप मे बनाया । समाज के हर तपके के लोगो के लिए कुन्दन का विचार हमेशा से ही सच्चाई का साथ देने का था । कुन्दन समस्याओं को जाती, धर्म और समुदाय के हिसाब से ना देख कर एक सच्चे समाजसेवी और मानवाधिकार कार्यकर्ता होने का परिचय देते हैं ।
कुन्दन ने दिल्ली आने के बाद महिलाओं पे हो रहे उत्पीड़न को बड़े नजदीकी से अध्ययन किया और फिर कुछ युवा वयस्क बुद्धिजीवियों के साथ मिल के “बी इन ह्यूमेनिटी फ़ाउंडेशन” की स्थापना की । इस संस्था के स्थापना के पीछे कुन्दन का मकसद महिलाओं से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए लड़ना था । कुन्दन ने बड़े ही हिम्मत के साथ ना सिर्फ कई महिलाओं को बलात्कार, एसिड अटैक, छेड़छाड़, तथा दहेज उत्पीड़न जैसे अपराधो मे दोषियों को सज़ा और इन्हे न्याय दिलाने मे मदद की है बल्कि अनेक महिलाओं को पुनर्वासित करने का भी बीड़ा उठाया । कुन्दन के अनुसार “आत्मा की पुकार” नामक एक परियोजना जो की “बी आई एच फ़ाउंडेशन” का ही एक भाग है उसमे इन अपराधों को रोकने के लिए किए जाने वाले सामाजिक परिवर्तनों पर प्रकाश डाला जाता है ।
इतना ही नहीं, कुन्दन ने इसके बाद अपने चर्चे और भी क्षेत्र मे बटोरने शुरू कर दिये थे । कुन्दन ने महिला शशक्तिकरण और समाज के प्रति समर्पित एक किताब “टाइटल इज अनटाइटल्ड” लिखी जिसमे समाज मे इन मुद्दों के उदासीनता पर चर्चा की गयी है ।
इसके बाद कुन्दन दिल्ली के गिने चुने प्रभावकारी सामाजिक तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप मे पहचाने जाने लगे ।
पिछले साल कुन्दन ने बाहर के देशों मे फंसे कई भारतीय नागरिकों को वापस अपने देश लाने मे सतत मदद की है जिसकी वजह से उन भारतियों को अपनी आज़ादी फिर से वापस मिल पायी और स्वदेश का प्यार वो फिर से पा सके । सफर यहाँ भी आसान नहीं था, लेकिन कुन्दन ने अपने कौशल और साहस का परिचय देते हुये इसे आसान बना दिया ।
कुन्दन के कार्यों को अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय दोनों ही मीडिया ने सराहा है । और अपने इन्ही साहसिक कार्यों की बदौलत कुन्दन पिछले कुछ सालों से एक मीडिया फ़ेस बन के उभरते हुये सामने आए हैं ।
आज अपना बिहार टीम से विपुल ने इस शेर-ए-दिल वास्तविक जीवन के नायक (द रियल लाइफ हीरो) “कुन्दन श्रीवास्तव ” का साक्षात्कार लिया जिसमे कुन्दन ने अपने जीवन के अद्भूत तथा अविस्मरणीय पलों को आपना बिहार के साथ साझा किया है । आइये जानते हैं इस बिहार के बेटे की साहस और रोमांच से भरी कहानी खुद कुन्दन के शब्दों में :
प्रश्न: स्वागत है कुन्दन जी आपका हमारे “आपना बिहार” परिवार की तरफ से । अपने बारे मे हमे कुछ बताइये ?
उत्तर: धन्यवाद विपुल । मैं कुन्दन श्रीवास्तव एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हूँ । पढ़ाई और प्रोफेसन मे देखा जाये तो मैं एक संगणक अभियंता (कम्प्युटर साइन्स इंजीनियर) हूँ ।
प्रश्न: अभी तक आप के सफर मे आप कितने संगठन या समुदाय के लिए एक मानवाधिकार कार्यकर्ता या स्वयंसेवक (वॉलंटियर) के रूप मे योगदान दे चुके हैं ?
उत्तर: “Be In Humanity Foundation” “Help Us to Help the Child (HUHC)”
प्रश्न: आप कहाँ से हैं ?
उत्तर: “रक्सौल, पूर्वी चम्पारण, (बिहार)”
प्रश्न: क्या आप हमे अपने बचपन के बारे मे कुछ बता सकते हैं ?
उत्तर: “जी जरूर । मेरा जन्म रक्सौल डंकन हॉस्पिटल मे 3 जुलाई 1989 को हुआ । मेरी प्राथमिक शिक्षा रक्सौल के KHW English Medium मिशन स्कूल से हुई थी । मैं एक छोटे परिवार मे जन्मा था, जहां पढ़ाई को प्राथमिकता दी जाती रही है और मैं बचपन से ही एक मेधावी छात्र होने के साथ साथ समाज से जुड़ी समस्याओं मे बहुत रुचि रखता था । जहां बचपना खिलौने और चोकोलेट्स की दुनिया मे उलझ के बीतती है, वही मेरा बचपन समाज के समस्याओं को हल करने के रास्ते ढूँढने मे बीतता रहा है । इस पूरे यात्रा मे मैं अकेला रहा था क्यूंकी मैं उस उम्र मे अपने परिवार से इन बातो को साझा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था ।”
प्रश्न: आपके परिवार के बारे मे हमे कुछ बताइये ?
उत्तर: “मेरे परिवार मे मेरे माँ – पापा , मेरे बड़े भाई और मेरे छोटे भाई कुल 5 लोगो का परिवार हुआ करता था । अचानक 2002 में मेरे छोटे भाई को कैंसर हो गया और 3 साल की लड़ाई के बाद 2005 मे उस का देहांत हो गया । इसकी वजह से घर मे काफी दुखी माहौल बन गया था । धीरे धीरे समय बीतता गया और अभी पूरी तरह जख्म भरे नहीं थे की फिर अचानक मेरे पिता जी का देहांत 2011 मे हो गया । एक छोटा सा परिवार और भी बहुत छोटा हो गया । जहां मुझे अपनों को खोने का दर्द समझ आ रहा था वही मैं अपने दर्द को दूसरों मे देखते हुये इस राह पे चलने को खुद को प्रेरित कर गया । अभी भैया की शादी हो चुकी है और भाभी के साथ साथ अब एक प्यारी सी बिटिया (मेरी भतीजी ) भी हमारे इस परिवार की सदस्य बन चुकी है । ”
प्रश्न: समाज के समस्याओं से आप पहली बार कब चीर परचित हुये ?
उत्तर: “2004, जब मैं मात्र 14 साल का था उस वक़्त समाज मे हो रहे बुराई और गलत पद्धति के खिलाफ आवाज़ उठा रहा था , तभी समाज के ठेकेदारों ने मेरा अपहरण करवाया , और वो पहली बार था जब मैंने बड़े ही करीब से इसे देखा था । ”
प्रश्न: आप ने अभियांत्रिकी (engineering) की पढ़ाई क्यू चुनी और कहाँ से की है ?
उत्तर: “जैसा की मैंने आपको बताया है की एक मध्यम वर्ग परिवार में हर माँ बाप का सपना होता है की बेटा और बेटी इंजीनियर या डॉक्टर बने , मैं बचपन से पढ़ाई मे होशियार था । मैं डॉक्टर बनना चाहता था लेकिन जैसे जैसे मुझे समझ आई की डॉक्टर बनने के लिए काफी पैसो की जरूरत पड़ती इसलिए अपने परिवार की स्थिति को समझते हुये मैंने इंजीन्यरिंग की तरफ अपना रुझान दिखाया और AIEEE परीक्षा मे सफलता प्राप्त कर के देहारादून के DIT विश्वविद्यालय से अपनी इंजीन्यरिंग की पढ़ाई information technology मे पूरी की । ”
प्रश्न: देहारादून ही क्यूँ ?
उत्तर: “AIEEE मे All India rank 38,000 (करीब करीब) प्राप्त करने के बाद देश के विभिन्न कॉलेजो ने परामर्श (counseling) के लिए बुलाया । जिनमे से कुछ कॉलेज BIT MESRA – रांची , DIT – देहरादून, भारती विद्या पीठ – पुणे , और भी कई थे । चूंकि इंजीन्यरिंग करना मेरे लिए एक कुशल ग्रेजुएट होना था , साथ ही साथ मैं मानवाधिकार और समाज के विभिन्न पहलू पर अपना ध्यान केन्द्रित रखना चाहता था । इसलिए देहारादून मेरे लिए सबसे अच्छा विकल्प था” ।
प्रश्न: आपने दिल्ली आने की कब सोची और कैसे पहली बार आप दिल्ली पहुंचे ?
उत्तर: “2011 में इंजीन्यरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरी नौकरी दिल्ली के एक सॉफ्टवेयर कंपनी मे हो गयी और उसकी वजह से मुझे दिल्ली आना पड़ा” ।
प्रश्न: आपने बताया की आप को 14 साल की उम्र मे अगवा किया गया था और आप उनकी चंगुल से बड़ी ही चालाकी से साहस दिखा के भाग निकले थे । क्या आप हमे इस घटना को विस्तार से बताएँगे ?
उत्तर: “ वर्ष 2002 से ही मेरे घर और परिवार के हर एक सदस्य समस्याओ से जूझ रहे थे । मेरे भाई को कैंसर का सामना करना पर रहा था और उसका इलाज़ BHU मे चल रहा था । ये सिलसिला कभी खत्म नहीं हो सका । मुझे याद है की साल 2004 में मेरे भाई को दूसरी बार ऑपरेशन के लिए बीएचयू ले जाया गया था । उस वक़्त माँ पापा मेरे छोटे भाई के साथ एक महीने से बीएचयू मे उसका इलाज़ करवा रहे थे । मैं अपने बड़े भाई के साथ घर पर था । एक दिन की बात है की मैं बाज़ार में कुछ सामान लेने के लिए जा रहा था , घर से निकलते ही परोस के ही एक लड़के ने मुझसे लिफ्ट मांगी । चूंकि वो हमारे मोहल्ले का था तो बिना कोई संदेह के उसकी मदद के लिए मैं तैयार हो गया । शहर के बीच पहुँचने तक उसकी मुलाक़ात एक और लड़के से हुई जिसके कहने पर मैं उनके साथ शहर से 3 किलोमीटर आगे एक गाँव चला गया, जहां मेरी मुलाक़ात इन दोनों ने एक आदमी से ये कहते हुये कराई की मुझे इनसे काम था इसलिए हम इनसे मिलने आए उसी दौड़ान ये लोग उस इंसान से बात कर रहे थे और मैं सामने बैठा हुआ था । कुछ देर बाद उन लोगो ने मुझसे कॉफी पीने की ज़िद की , बदकिस्मती से मैंने कॉफी के लिए हाँ कर दी और उसे पी लिया । उसके बाद मुझे कुछ नहीं पता की मेरे साथ क्या हुआ था । जब मैं होश मे आया तो देखा मेरे हाथ , पैर दोनों लोहे की जंजीर से बंधे हुये थे और साथ ही मेरी आँखें भी बंधी हुई थी । मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था , रोते हुये बहुत बेचैनी से जब मैंने पूछा तो सामने से आवाज़ आई “तुम्हारा अपहरण किया गया है” । मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था और मेरे दिमाग मे सिर्फ एक बात आई जो मैंने उनसे पूछा की “मेरे साथ दो लड़के और भी थे वो कहाँ हैं ?” फिर उन्होने बोला की तुम्हारे अपहरण की शाजिस पिछले 1 महीने से चल रही थी और जो 2 लड़के तुम्हारे पड़ोसी थे वो उस शाजिस का ही एक हिस्सा था । और उन लोगो ने तुम्हें घर से यहाँ तक पहुंचाने के लिए बड़ी रकम ले ली है । 6 दिसम्बर 2004 को मेरा अपहरण हुआ था , अपहरणकर्ता के सारी बात सुनने के बाद मैं अंदर से काफी डर गया और धीरे धीरे उनके दिये जा रहे यातनाओं को सहन करने लगा। कभी वो मारते पीटते थे कभी बंदूक और हथियारों से डराया करते थे । ये सिलसिला बढ़ता चला गया । धीरे धीरे अपहरणकर्ता मेरे घर फोन कर के मेरे परिवार वालो को परेशान करने लगे थे । एक दिन की बात है की मेरे ज्यादा रोने की वजह से उन लोगो ने मेरे पैर पर चाकू मार जख्मी कर दिया था । जिसके कारण मैं बहुत तकलीफ मे रहने लगा था, और उनलोगों से पैरो की ज़ंजीर खोलने के लिए आग्रह किया करता था । अपहरणकर्ता के घर मे हमेशा एक महिला हुआ करती थी । थोड़ी सी दया आने के बाद महिला के कहने से मेरे पैरो की ज़ंजीर खोल दी गयी थी । मुझे एक अंधेरे कमरे मे ज़मीन पर गद्दा बिछा कर बीच मे और दोनों तरफ से दो आदमी के साथ सुलाया जाता था । हमेशा मेरे आँखों को बांध कर रखा जाता था जिसकी वजह से आँखों की रोशनी खत्म सी होने लगी थी । एक दिन की बात है जब मुझे होश आया तो देखा की मेरे दोनों तरफ कोई आदमी नहीं है चूंकि मेरे हाथ साइकल के पहिये की ट्यूब से बंधे हुये होते थे तो मैं आसानी से अपनी आँखों की पट्टी को ऊपर कर देख लेता था । उसी दिन मुझे ऐसा लगा की घर का दरवाजा खुला है, और मैं उठा फिर मैंने भागने की कोशिश की । जैसे मेरे पैर कमरे के बाहर पड़े, उन लोगो ने मुझे पकड़ लिया । फिर कमरे मे बंद कर मारने पीटने के बाद मुझे पूरी तरह डराने के लिए पैर मे गोली मार दी । मैं दर्द से कराह गया था । लेकिन मेरे पास विकल्प नहीं थे । आँखों को हमेशा बंधे रहने की वजह से मुझे दिन और रात का फर्क पता नहीं चल पाता था । मैं पूरी तरह डर गया था और इस हादसे के बाद समझ गया था की मेरी मौत सुनिश्चित है । इस लिए मैं किसी तरह वहाँ से भागने के लिए सोंचने लगा । 12 दिसम्बर 2004 जब मेरी आँखें खुली, तो अपने हाथ का प्रयोग कर अपने आँखों मे बंधे पट्टी को पूरा हटा कर देखा तो एक खिड़की से हल्की रोशनी सी दिखाई दी । कच्ची मिट्टी के घर में मुझे रखा गया था जहां खिड़की को सिर्फ ईट से ढका गया था उसी दिन मैंने खुद से बात कर के फैसला लिया की अगर इस खिड़की के ईंट को हटा कर भागने की कोशिश की जाये तो शायद मैं बच सकता हूँ । मेरे पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था क्यूंकी मेरे एक तरफ खाई और दूसरी तरफ कुआं दिखाई दे रहे थे । ऐसा लगने लगा था की मैं मौत के बहुत करीब हूँ । वो कहते हैं ना की “किसी को इतना ना डराओ की उसके अंदर का डर ही खतम हो जाये” । इस हादसे ने धीरे धीरे मेरे डर को पूरी तरह मिटा दिया और उसी रात जब मेरे दोनों तरफ दो आदमी सोये हुये थे, तो मैं उठा और धीरे धीरे खिड़की से ईंट उठा कर ज़मीन पर रखने लगा । जब कुछ ईंट खिड़की से निकाल दिया तब मैं खिड़की पर चढ़ कर नीचे कूद गया । रात काफी डरावनी थी लेकिन यकीन मानिए मुझे उस वक़्त डर नहीं लगा । मैं गन्ने की खेत से भागता हुआ एक नदी को पार कर कुछ समय बाद एक गाँव पहुंचा, और वहाँ पहुँच बेहोश हो कर गिर गया । जब होश आई तो देखा उस गाँव के एक जमींदार परिवार के घर में मुझे उपचारित किया जा रहा था । जब मैं ठीक महसूस कर रहा था तब गाँव वालो ने मुझसे सच बताने को कहा चूंकि मेरा अपहरण मीडिया के द्वारा पूरे राज्य मे चर्चा का विषय बना था । जैसे हीं गाँव वालो को मैंने अपना नाम बताया तो उन लोगों ने मेरे शहर के प्रशाशन और मेरे परिवार वालो को सूचित किया । इस तरह से मैं खुद को बचाने मे कामयाब हो पाया । मैं आपलोगो के साथ अगर अपनी अपहरण की कहानी और आप बीती के हर एक दर्द को साझा करूँ तो शायद आप मेरे तकलीफ को महसूस कर रो पड़ेंगे । लेकिन रोना कभी भी कोई हल नहीं है । इसलिए जीने की उम्मीद लिए दूसरों के हित के लिए समर्पित किया मैंने इस जीवन को ।”
प्रश्न: आपकी नज़र मे मानवाधिकार की लड़ाई क्या है ?
उत्तर: “मानवाधिकार जिसका अर्थ मानव के अधिकार के लिए लड़ना है । एक मानवाधिकार कार्यकर्ता होने के नाते जाती, धर्म, क्षेत्र, शहर, परिवार और लिंग से ऊपर उठ कर मानव के हित की लड़ाई ही मानवाधिकार की लड़ाई है ।”
प्रश्न: सही मायने मे मानवाधिकार के बारे मे लोगो को जागरूक करने के लिए आप के क्या विचार हैं ?
उत्तर: “ हर देश के नागरिकों को मौलिक अधिकार दिये गए हैं जैसे जीने के अधिकार , बुनियादी आवश्यकताएँ इत्यादि । इन सभी अधिकारो के बारे मे लोगो को जागरूक करना हर तरह से सही है और मैं इसका पूर्ण समर्थन करता हूँ । मैं लोगों को जुल्म , अन्याय , अनैतिकता, भ्रष्टाचार और गलत पद्धति से लड़ने के लिए प्रेरित करता हूँ । मैं एक प्रेरणा दूत बन के द एडुवोल्यूशनर टीम के ह्यूमन राइट्स वर्कशॉप के लिए तथा और भी कई ऐसी परियोजनाओं के लिए अपनी सेवा दे चुका हूँ । ””
प्रश्न: सबसे पहली घटना जिसमे आपने दूसरों के लिए लड़ाई लड़ी एक मानवाधिकार कार्यकर्ता बन के उस के बारे मे हमे बताए ?
उत्तर: “दिल्ली के एक रेप केस मे मैंने एक महिला की मदद करने से इस की शुरुआत की थी । इस केस मे मैंने उस महिला की दबी हुई आवाज़ को उठाया और इस रेप केस का FIR सबसे पहले मैंने दिल्ली पुलिस मे फ़ाइल किया । तब से लेके उस दोषी को सज़ा दिलाने तक हमारे NGO बी इन ह्यूमेनिटी फ़ाउंडेशन की तरफ से कोर्ट मे केस लड़ने के लिए वकील की सेवाएँ भी दी गयी । ”
प्रश्न: भारत से बाहर के देशों मे फंसे भारतियों को वापस अपने देश बुलाने मे आपका अहम योगदान रहा है , कैसे किया आपने ये सब ?
उत्तर: “मैं और मेरी टीम दूसरे देशों मे जहां भी भारतीय नागरिक फँसे हुये हैं, वहाँ पर वहाँ के नियोक्ता (employer) से बात कर के उन भारतियों को वापस बुलाने का पूरा प्रबंध करवाते हैं । बेशक हमे भारतीय एम्बेसी से मदद मिलती रही है । लेकिन ज़्यादातर केसों मे हमने नियोक्ताओं से सीधी बात-चीत की है । ”
प्रश्न: भविष्य मे आपकी कुछ योजनाएँ जो आपने समाज के हित के लिए बनाई हैं ?
उत्तर: “ द वॉइस रेजर – ये हमारी एक नयी पहल है जिसके माध्यम से हम अपने वैबसाइट और सोशल मीडिया पर आम आदमी के समस्याओं को ना सिर्फ दिखाएंगे बल्कि उसे एक परिणाम तक पहुंचाएंगे । ये एक ऑनलाइन मीडिया कंपनी है जिसके द्वारा जनता की समस्याओं की आवाज़ को हम उन तक पहुँचाते हैं, जिनसे उस समस्या का हल निकल पाये । अभी सिर्फ एक शुरुआत है लेकिन इसे हम एक बड़ा रूप देने को तैयार है । लोगों के बीच इसे सराहा जा रहा है । लोग इसे काफी पसंद कर रहे हैं और अब आज के दिनों मे ही हमारे पास रोज़ करीब करीब 20-25 केस आ रहे हैं । भविष्य मे इसे एक वृहत स्तर का शक्तिशाली आवाज़ उठाने वाला मंच बनाना मेरा लक्ष्य होगा, जिससे मैं अपनी सेवाओं को कोने कोने तक पहुंचा सकु और ज्यादा से ज्यादा लोगो के समस्या का समाधान दे सकूँ । मुझे खुशी है की मैं मानवता के हित के लिए अपने सपनों को उड़ान दे रहा हूँ । ”
प्रश्न: आप नीजी ज़िंदगी मे क्या पसंद करते हैं (समाज सेवा और आपके प्रॉफ़ेशन को छोड़ कर ) ?
उत्तर: “ नॉवेल लिखना मुझे प्रिय है । खास कर के मैं जिस क्षेत्र मे काम कर रहा हूँ, उस क्षेत्र मे लिखना मुझे अच्छा लगता है । मेरी एक नॉवेल टाइटल इज अनटाइटल्ड प्रकाशित हो चूकी है और दूसरी मैं लिख रहा हूँ । ”
प्रश्न: आपकी एक किताब प्रकाशित हो चुकी है । अपने इस किताब के बारे मे कुछ बताइये ?
उत्तर: “टाइटल इज अनटाइटल्ड किताब हमारे समाज मे रह रहे लोगो को देखते हुये उनकी समस्याओं को समझने और उसके संवेदनशीलता को दर्शाता हुआ एक किताब है । खास कर के महिलाओं के प्रति जागरूकता फैलाने के मकसद से लिखी गयी किताब जिससे हमारे समाज मे महिला शशक्तिकरण को बढ़ावा मिल सके। हमारे देश की महिलाएँ आज हर जगह रेप, दहेज प्रथा, बाल विवाह, वेश्यावृत्ति, बच्चों के अवैध व्यापार जैसे समस्याओं को झेल रही हैं । हमारी इस किताब ने इन्ही सब समस्याओं को 11 स्वतंत्र कहानी के रूप मे दिखाया है । ”
प्रश्न: समाज मे रह रहे लोगों के लिए आप कुछ संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर: “समाज इन्सानो से बनता है । और इंसान विवेक , ईमान और इंसानियत से । एक इंसान होने के नाते हमे धर्म , जाती या समुदाय जैसे भेद भाव से आगे आकर, एक और सिर्फ एक धर्म इंसानियत को अपनाना चाहिए क्यूंकी अच्छे और सच्चे इंसान ही एक अच्छे समाज को एक सही रूप दे सकते हैं ”
प्रश्न: “आपना बिहार” जैसे मंच के माध्यम से समाज के बुद्धीजीवीयों को आप अपनी सेवा एक मार्गदर्शक (ह्यूमन राइट एक्टिविटीज़ के गाइड ) बन के देना चाहेंगे ?
उत्तर: “ हाँ । मैं हमेशा से ही ऐसे मंच को अपना समर्थन और मार्गदर्शन देता आया हूँ और मुझे खुशी होगी की मैं इस मंच के माध्यम से अपने समाज के लोगो को उनके मौलिक अधिकारों के प्रति जागरुक बना सकु । ”
प्रश्न: कुन्दन जी अंत में कोई सुझाव / शुभकामना संदेश जो आप टीम- “आपना बिहार” को देना चाहते हो ?
उत्तर: “जी मैं आपना बिहार की टीम का तहत दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूँगा सबसे पहले, मुझे इस लायक समझने के लिए और इस साक्षात्कार के लिए । मेरी शुभकामनाएँ अपना बिहार के लिए ये हैं की आने वाले नव वर्ष मे अपना बिहार अपनी छवि को और भी मजबूत बनाए और जिस तरीके से आप सब ने मिल के इसे एक आयाम दिया है आशा करता हूँ ये विश्व कीर्तिमान स्थापित करेगा । धन्यवाद । ”
विपुल:- जी बहुत बहुत धन्यवाद एक बार फिर से कुन्दन जी आपका कीमती समय हमे देने के लिए । आपना बिहार टीम की तरफ से आपको नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
अभी हाल मे ही एक BSF के जवान की आवाज़ को जंगल मे लगे आग की तरह कुन्दन ने अपने प्रयासों से फैलाया और वो विडियो मात्र 4-5 घंटे मे ही इतनी ज्यादा मात्रा मे साझा की गयी की इसके प्रभाव से गृह मंत्री जी ने तुरत कारवाई के आदेश दिये । सिर्फ यही नहीं कुन्दन ने ऐसे कितने मामले सुलझाए हैं जिसके फलस्वरूप कुन्दन के सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल पर इनके प्रशंशको की संख्या अब 1,46,000 से ज्यादा है । दिन प्रतिदिन इनके प्रशंशकों की संख्या बढ़ती ही जा रही है । और कुन्दन इस से भी ज्यादा खुश इस बात पर हैं की अब सिर्फ देश ही नहीं विदेश के कोने कोने मे रह रहे भारतीय सही मायने मे अपनी समस्या को इनके पास रख पा रहे हैं और कुन्दन ज्यादा से ज्यादा लोगो को मदद कर पा रहे हैं । आपना बिहार सलाम करता है ऐसे हिम्मत से दूसरों के हित की लड़ाई लड़ने वाले शेर-ए-दिल “कुन्दन श्रीवास्तव” के जज़्बे को ।